Friday, March 10, 2017

Bunk Bed - My First Carpentry Work

                  मुझे याद नहीं कब मैंने इसके बारे में सोंचा था, पर शायद पिछले एक वर्षों में लगातार कई यूट्यूब वीडियोस और साइट्स देखि जहा कारपेन्टरी और बंक बेड की जानकारी और रचना विस्तार से दी गयी थी । बचपन में हम सब छोटे-मोठे काम स्वय कर लिया करते थे, जैसे कारपेन्टरी, इलेक्ट्रिकल, टाइल्स । गर्मी की छुट्टियों में  जब गाँव जाते और वहाँ घर का निर्माण होता तो घर से ३ मजदूर मैं, बड़ा भाई और चाचा जरूर होते । सो काम करने और उसको सीखने की आदत बचपन से ही थी । तब उसके ख़तम होने तक की निगरानी चाचा रखते थे पर उनके जाने के बाद शायद हमने किसी काम को समय पे ख़तम किया हो इसपे कोई बंधन नहीं रहा । कितनी बार मैंने कुछ नया शुरू किया और उसे आधे में ही छोड़ दिया । हमेशा जिज्ञाशा, मोह, इच्छा ने नए नए अविष्कार न सही पर प्रयास जरूर शुरू किये । इस बार था - 'बंक बेड' । 



                 अपूर्वा और श्रेया के लिए बंक बेड - एक पर एक बेड । दोनों हमेशा से हमारे साथ ही सोते आये हैं । छोठे होने पर हमारे 6x5 के बेड पर आराम से सब सो जाते थे पर बच्चे कब तेजी से बढ़ जाये पता ही नहीं चलता । सो पूरा बेड अब ४ लोगो के लिए कम पड़ने लगा और उसका परिणाम ये हुआ की मुझे बेड छोड़ निचे सोना पड़ गया । शायद एक वर्ष से ज्यादा समय हो गया मुझे निचे सोते । फिर ख्याल आया की एक छोटा बेड लेकर हमारे ही कमरे में उन दोनों को सुलाया जाये । वो भी किया गया पर इसके परिणाम ये हुए की कमरा पूरा भर गया और उस पर रोज कौन सोयेगा ये समस्या बनती रहती क्योंकि मम्मी के साथ सबको सोना हैं । जो बच्चा रह गया उसको कम प्यार करती हैं ये रोज का आरोप लगता रहता । 

                 अम्मा के जाने के बाद उनका कमरा लगभग स्टोर रूम जैसा हो गया था । कई बार लगा इसे बच्चो का कमरा बना दिया जाए पर हर बार टाल देते की बच्चे छोटे हैं । पर लगभग एक वर्षों से नीचे सोने के बाद लगा की अब उनके लिए बेड बहोत जरुरी हो गया हैं । लगभग एक वर्ष पहले देल्ही घुमने गए थे तब हमारे कमरे में बंक बेड था जिसपर श्रेया को बहोत मजा आया । ग़लती से मैंने उसे प्रॉमिस कर दिया की मैं तुम दोनों के लिए भी बंक बेड लूँगा । और फिर श्रेया ने ये प्रॉमिस मुझे कभी भूलने ही नहीं दिया । 

                 दिवाली के समय ऑनलाइन कई वेबसाइट देखी की वही से ख़रीद लिया जाय । पर उनकी क्वालिटी अमेरिका या लन्दन जैसी नहीं थी और दाम भी लगभग ३० हज़ार से ज्यादा था । अमूनन 6x6 के बेड को बनाने में २०-२५ हजार रुपये लग जाते हैं । सो 4x6 के बंक बेड के लिए ३० हजार रुपये लगभग ठीक थे । समस्या यही ख़तम नहीं हो  रही थी । यहाँ कारपेंटर बहुत ज्यादा प्लाई और सनमाइका का काम करते हैं जिसमे बहोत कम समय लगता हैं । पुरे लकड़ी का काम ज्यादा मेहनत, ज्यादा समय और ज्यादा स्किल लेता हैं सो दाम भी ज्यादा और कारीगर भी बहोत कम होते हैं ।  ख़ास कर अभी तक बंक बेड जैसे काम चलन में उतने नहीं हैं । 

                 अब समस्या ये थी की क्या किया जाय फिर ख्याल आया क्यों न खुद बनाया जाय । पर ऐसे काम पहले नहीं किये और काम को अधूरा छोड़ने की आदत ने और डरा दिया, खास कर बीवी जी को । दिवाली के बाद मैंने लगभग रोज १-२ घंटे ऑनलाइन विडियो देखे । कैसे टूल्स को इस्तेमाल किया जाता हैं ? कैसे लकड़ी को काटा जाता हैं ? क्या क्या टूल्स जरुरी हैं ?
पॉल सेलर के वीडियोस काफी काम के निकले, मथियास के भी काफी अच्छे वीडियोस हैं । छोटे बॉक्स बनाना , जोइनरी सीखना, टेबल बनाना ये वीडियोस बहोत उपयोगी रहे । लगभग मैंने ठान ही ली थी की अब में खुद कुछ न कुछ बनाऊंगा । सो मेरे पास कुछ टूल्स थे और धीरे धीरे मैंने टूल्स खरीदने शुरू किये । जैसे शुरू में ड्रिल मशीन, प्लानर, चिसेल और हैण्ड सॉ । ये सब मैंने ऑनलाइन ख़रीदे । फिर लगा ये ऑनलाइन सही नहीं इन्हें अपने सामने खरीदना पड़ेगा और मैंने अपने पास के दूकान से छोटा प्लानर कई सरे चिसेल, हैण्ड सॉ और सर्कुलर सॉ खरीदी । लगभग २-३ हजार खर्च हो चुके थे । 

                 बड़ा काम करने से पहले एक छोटा POC तो होना चाहिए ये सोंच मैंने टूलबॉक्स बनाने का फैसला किया । अगर बन गया तो बंक बेड बनेगा वरना ख़रीदा जायेगा । फिर अचानक मैंने एना वाइट - अलास्का की वेबसाइट देखी और उसकी स्टोरी पढ़ी । प्रेग्नेंसी के दौरान एना ने पहली बार कारपेन्टरी की जब बहोत जरुरत पड़ी और फिर एक के बाद एक प्रोजेक्ट वो करती गयी । ऐसे कई उदाहरण मेरे सामने आ गए । फिर याद आया इंजीनियरिंग के दिन, कितनी सफाई से काम किये थे उन दिनों । बस कमी थी तो टूल्स इस्तेमाल करने की जानकारी की । फिर लगा जब ये कर सकती हैं तो में क्यों नहीं और मेरा विश्वास बढ़ गया और मैंने इसे आगे ले जाने का निर्णय ले लिया । अमेरिका और लन्दन जैसे शहरो में कारपेन्टरी के टूल्स और वुड बहोत आसानी से मिल जाते हैं, ज्यादा तर ऑनलाइन । पर भारत में ऑनलाइन और दुकान दोनों पर ये मिलने मुश्किल होते हैं और अगर आप नौसिखिये हैं तो भूल ही जाये । फिर भी मैंने लिस्ट बनानी शुरू की पर इसका सबसे बड़ा रुकावट आने वाला था, अमेरिकन प्लान जो एडवांस टूल्स पे बना था और में जो हैण्ड टूल्स से बनाने वाला था । मेरे पास ड्रिल मशीन और सर्कुलर सॉ के अलावा कुछ भी एडवांस टूल्स नहीं था । ड्रिल मशीन चलाने में डर लगता था और सर्कुलर सॉ कभी चलाया नहीं था और वो बहोत की ख़तरनाक़ हैं ये पता था । कुछ टूल्स ऐसे थे जिनके बारे में यहाँ लोग जानते नहीं थे - टेनन सॉ, सर्कुलर सॉ । फिर भी कैसे करते करते लगभग ४ हजार के सामान तो ले ही लिए । 

                 अब शुरू हुआ टूलबॉक्स बनाना । पुराने कुछ प्लाई बचे थे उनको लेके मैंने शुरुवात की । पहली बार हैण्ड सॉ का इस्तेमाल सीखा । एक नहीं १० बार काटे, सब ग़लत । धीरे धीरे हैण्ड सॉ पर कण्ट्रोल आता गया पर शनिवार और रविवार की छुट्टियां ख़तम हो गयी । करीबन ३ हफ़्तों में ६ शनिवार-रविवार काम करने पर एक फेज ही कर पाया वो भी बे ढंगा। फिर शुरुवात की प्लानर इस्तेमाल की, कई बार वो गलत हो जाता । फिर हार कर सर्कुलर सॉ का इस्तेमाल करने का फैसला लिया। उसके इस्तेमाल से पहले उसका मार्किंग बेस वुड से बनाना पड़ता हैं, जिसे बनाने में समझो जान बच गयी । उसके बेस को काटते समय सर्कुलर सॉ कण्ट्रोल से बहार हो गया और हवा में उछाल गया। अगर सावधानी नहीं बरती होती तो शायद हाथ या पैर काट देता । सो जब आप सर्कुलर सॉ इस्तेमाल करे बहोत सावधानी बरते । उसे इस्तेमाल करने का एक आईडिया हैं - कहते हैं बुलेट को चलाते समय वजन रखना चाहिए वरना वो आपको हवा में उछाल देती हैं ठीक वैसे ही सर्कुलर सॉ दबा के इस्तेमाल करना चाहिए वार्ना वो हवा में उछल जाता हैं । सो लगभग महीने की मेहनत (शनिवार-रविवार) के बाद मैंने टूलबॉक्स बना ही लिया और इस छोटी सी कामयाबी ने मेरे बंक बेड के बनने के रास्ते को पूरा तय कर दिया । पर इसमें एक बड़ी रुकावट थी - मेरी आदत । बचपन से मुझे हमेशा कुछ नया करने की लालसा रही हैं ।  काम शुरू होता हैं, एक माइलस्टोन या फिर जहा पर मुझे कामयाबी मिली और उस काम को करने का मजा ख़तम, काम भी ख़तम । लगभग बंक बेड के साथ भी यही हो सकता था । पर इसपर भी मेरे पास एक उपाय था - शर्मिंदगी । किसी के सामने शर्मिन्दा होना पड़े ये मुझे गवारा नहीं । सो मैंने इसके बारे में दोस्तों और करीबी लोगो को बता दिया । और भी पक्का कर दिया - Facebook पर लिख कर, ताकि लोग याद दिलाते रहे और में उसे पूरा करू या फिर मजाक बनता रहे । और यकीन मानिये इसने मुझे जैसे ठन्डे नदी में दिये का प्रकाश जैसा काम किया । इतने दर्द , लंबे काम और व्यस्तता के कारण भी मैंने ये काम किया सिर्फ Facebook पे दिए बयान की वजह से । 

                 अब अगला काम था वुड का, काफी ऑनलाइन खोज के बाद ये तय हो गया की लगभग २० हजार की लकड़ी लगेगी । पर कौन सी अच्छी होगी, किस साइज में मिलेगी ये थोड़ा मुश्किल था क्योंकि अमेरिका में ये आसान था पर यहाँ सब देसी स्टाइल । पर मेरा भाग्य था की इसका समाधान भी मेरे ही बिल्डिंग में रहने वाले रमेश वर्मा जी करने वाले थे । उनका अपना बिज़नेस ही वुड में था, सो उन्होंने साइज, क्वालिटी और सारी लकड़ी घर तक पहुचाने का काम आसान कर दिया । यहाँ तक की सारी लकड़ियों पर प्लानर तक करवा दिया जिससे मेरा काम बहुत आसान हो गया । उन्होंने ही अच्छे टूल्स की जगह बताई - मुम्बई मरीन लाइन्स । वहा जाकर पता चला टूल्स का बाजार क्या होता हैं । यहाँ मैंने नए हैण्ड सॉ, अच्छे चिसेल, बंद सॉ, C क्लैंप और टेनन सॉ ख़रीदा । लगभग टूल्स पे ६ हजार खर्च कर चूका था । बाद में पता चला जो बचपन से सुनते आ रहे वो की, इसे ही लोहार चॉल कहते हैं । अबे मेरे पास वुड था, पुरे टूल्स थे बस अब जरुरत थी तो शुरुवात की और इसमें रुक्मणी का बहोत बड़ा डर शामिल था । मैंने उसे कहा था की ये काम मैं कारपेंटर के साथ करूँगा पर ऐसा होने वाला नहीं था । बच्चे मुझे रोज काम शुरुवात कब होगा पूछ-पूछ कर शर्मिंदा किये जा रहे थे । 

                 इस बीच मैंने ऑफिस में ३ दिन की छुट्टी के लिए अप्लाई कर दिया । २३-२४-२५ जनवरी के साथ शनिवार-रविवार और २६ जनवरी की छुट्टी मिलकर ६ दिन और फिर शनिवार-रविवार मिलने वाला था । सो लगभग ७ दिन का एक साथ काम । यहाँ उम्मीद ये बनी की बंक बेड लगभग बन जायेगा जैसा वीडियोस में बताया गया था । पर समय और भविष्य आपके लिए क्या लिखता हैं वो आप आने वाले समय में ही जान पाते हो । जो बड़ी चुनौती बनने वाली थी । 
मैंने कई हफ़्तों तक कई प्लान को देखने के बाद http://woodgears.ca/bed/bunk_bed/plans.html मथियास के इस प्लान तो अपनाया और इसमें अपने अनुसार बदलाव किये । लकड़ी की साइज, स्क्रू के पैटर्न व जगह सबमें बदलाव करना पड़ा । इस काम में कुछ नया भी जुड़ने वाला था - डोवेल । इस बीच मैंने हैण्ड सॉ को फाइलिंग करना सिख लिया था और साथ में क्रॉस कट सॉ और रिप कट सॉ के बारे में भी सिख लिया था । 

                 २० जनवरी २०१७, शुक्रवार को मैंने पहली लकड़ी काटी और काम की शुरुवात कर दी । फिर शनिवार को आगे के काम को शुरू किया । २१ जनवरी को लगभग हैण्ड सॉ के इस्तेमाल ने रात में कंधे को बहोत दर्द दिया। मानो हाथ निकाल कर रख देने का मन हुआ फिर अंत में पेरासिटामोल की दवा काम कर गयी। पर आने वाले दिनों में ये दर्द आम होने वाला था और दवा बदलने वाली थी । पेरासिटामोल की जगह - सिग्नेचर व्हिस्की  ने ले ली । और काम को करने का मजा भी बढ़ता चला गया ।  यहाँ मैंने और एक बड़ा चैलेंज ले लिया - मथियास के प्लान में जॉइंट्स सीधे थे, मैंने टेनन-मोर्टिस जॉइंट इस्तेमाल करने का निर्णय लिया । ये छोटा निर्णय नहीं था । इसकी वजह से मेरी मेहनत और समय में सीधा ४ गुना इजाफा होने वाला था । साथ ही साथ स्क्रू की जगह डोवेल का इस्तेमाल, ये काम एक स्किल्ड कारपेंटर की करते हैं पर मैंने भी इसे ही करने का निर्णय लिया । लगभग रोज सुबह ८ बजे से काम शुरू होता रात १० बजे तक चलता । बीच बीच में चाय, खाना फिर नहाना,  चाय-नास्ता चलते ही रहता । यहाँ सिग्नेचर भी काम आ जाता । दिम्माग एकाग्र करने में बहुत सहायक हैं ये । 







images - पहले दिनों में लकड़ी को काटने की शुरुवात 

बंक बेड बनाने की प्रक्रिया को ५ भागो में बाट दिया 
१. हेड बोर्ड (२)
२. रेलिंग 
३. स्टेप्स 
४. बेड फ्लोर (२)
५. कलरिंग 

                 इसमें हेड बोर्ड सबसे कठिन और मेहनत का काम था । यहाँ आपके मेजरींग, परफेक्शन, जजमेंट, एक्यूरेसी का इम्तेहान होता हैं । एक चूक आपकी मेहनत पर पानी फेर सकती थी ।  धैर्य सबसे जरुरी हैं यहाँ, आपने आपा खोया- पूरा काम ख़राब और बंद ।  सब सही होते हुए भी यहाँ एक दिक्कत सामने आ गयी । कुछ लकड़ी टेढ़ी निकल गयी और उसको प्लानर से सीधा करने पर भी पूरी तरह सीधी नहीं हुयी और उनके पतले होने का डर भी था । सो यहाँ जजमेंट कर टेनन-मोर्टिस जॉइंट करना बहोत जरुरी हो गया । जहा मुझे ५-७ दिनों मैंने पूरा बेड ख़तम करना था वहा मैं सिर्फ एक हेड बोर्ड ही ख़तम कर पाया । मजरिंग करना कारपेंटरी में सटीक होना चाहिए और चूक की गुन्जाईस बहुत होती हैं सो १-२ सूत हमेशा ज्यादा लेना चाहिए । निशान के लिए पेंसिल की जगह चाकू जैसे टूल सटीक काम आते हैं । लकड़ी काटने के बाद सबसे बड़ा काम था मोर्टिस (छेद) बनाना । इसमें सटीकता बहोत जरुरी हैं । पहला मोर्टिस मैंने चिसेल से ही बनाया और इसमें मलेट (रबर हैमर) का इस्तेमाल बहोत हुआ और इसकी वजह से मेरे कंधो में बहोत दर्द शुरू हो गए। फिर मैंने बाकी बचे ३ मोर्टिस ड्रिल मशीन की मदत से करने का फैसला लिया जो कारगर निकला । ततपश्चात् मैंने टेनन बनाने शुरू किये जिसमे हैण्ड सॉ का इस्तेमाल सटीक होने चाहिए। एक गलती आपके जॉइंट(जोड़) को ढीला और टेढ़ा कर सकती हैं । पर ये काम सटीक हुए और थोड़े बदलाव के बाद हेड बोर्ड टेनन-मोर्टिस जॉइंट सफल रहा ।  इसके बाद हर बेड पर २ हेड सपोर्ट लगाना था। पहले के ४ जॉइंट्स ने इतनी मेहनत और समय ले लिया की मैंने अगले ४ हेड सपोर्ट को आधे टेनन-मोर्टिस जॉइंट में करने का फैसला लिया । इसमें मोर्टिस(छेद) पूरा न करके ०.७५ इंच का और टेनन भी उतना ही किया गया । इससे लकड़ी के जॉइंट मजबूत बने रहते हैं । सारा भार स्क्रू पर नहीं आता । 


 
हेड बोर्ड टेनन-मोर्टिस जॉइंट से जोड़ 


हेड सपोर्ट आधे टेनन-मोर्टिस जॉइंट से जुड़े होने पर 

पूरा एक हेड बोर्ड 

उपर के २ मोर्टिस आधे हैं और निचे का पूरा 

 
मोर्टिस, ड्रिल मशीन का इस्तेमाल करके 




 
प्लानर का इस्तेमाल, लकड़ी को सीधा करने में 




                 अब काम फ़रवरी के महीने में चला जा चूका था । मैंने facebook पर स्टेटस भी शेयर कर दिए थे और लगभग सभी को पता चल चूका था की में बंक बेड बना रहा हू । प्रति दिन १०-१२ घंटे काम करना अब नियत हो गयी थी । पर पीठ का दर्द और पैरों की जड़ंन बहोत तकलीफ देती थी । अभी भी रुक्मणी को लग रहा था की काम कारपेंटर को दे देना चाहिए । लगभग जितने भी लोगो ने अभी तक ये काम देखा उनको २ हेड बोर्ड के काम से बंक बेड कैसे बनेगा वो समझ में नहीं आता था । में उन्हें ऊपरी रूप से समझाने की नाकाम कोशिश करते रहता और उससे भी बड़ा श्रेया अपूर्वा के सवाल की कब बनेगा ? और वो कब खेलेंगे ? फिलहाल पहले हेड बोर्ड में की गयी गलतियां और उनके सुधार ने दूसरे हेड बोर्ड को तेजी से बनाने में मदत की । पर अब मेरे पास काम के लिए सिर्फ २ दिन बचते शनिवार रविवार और उसमे भी कई सारी रुकावटे । लगभग २ हफ्ते गुजर जाने के बाद मैंने रोज सुबह ८-१० बजे काम करने का फैसला लिया । रोजाना बच्चो को स्कूल छोड़ने के बाद में २ घंटे सोये रहता हू । रात में १२ तक सोने के बाद सुबह ६ बजे उठना, ७. ४५ को वापस आके फिर सोना  ये दिनचर्या थी । इसमें मैंने बदलाव किया । फिर सोने की बजाय ये २ घंटे काम करने में लगा दिए और इसके परिणाम सकारात्मक आये । मेरे हेड बोर्ड, रेलिंग बन कर तैयार हो गए । 









रेलिंग में स्क्रू होल्स 

पर मेरे द्वारा डोवेल के इस्तेमाल के फैसले ने मेरा काम थोड़ा मुश्किल कर दिया । अमेरिका में डोवेल स्टोर में मिल जाता हैं पर यहाँ वो नहीं मिलता । डोवेल जॉइंट को इतना मजबूत बना देता हैं की वो काम १०० साल तक टिका रहता हैं । इसका उदाहरण मैंने अपने गांव के पुश्तैनी घर में लकड़ी के जोड़ में देखा था । पर डोवेल बनाना इतना आसान नहीं था । कुछ मेहनत और तरीको के बाद प्लानर, चिसेल इस्तेमाल कर मैंने कई डोवेल बना लिए । पूरी तरह से वो गोल नहीं थे पर मेरे काम के लिए उपयुक्त थे । इस तरह मेरा हेड बोर्ड पूरी तरह बन गया बस उनको जोड़ना बाकि था और ये सबसे कठिन, थकान और उत्साह को तोड़ने वाला काम था क्योंकि आप एक तरफ लकड़ी जोड़ते तो दूसरे तरफ की लकड़ी निकल जाती या फिर जॉइंट्स कठोर हो जाते । सीधी लकड़ी , सही टेनन-मोर्टिस जॉइंट इस काम को आसान कर देते हैं और जब आपके पास टेबल सॉ, रोटरी टूल, अच्छे चिसेल हो ते ये अचूक बनते हैं । पर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं था और साथ में एक हेड बोर्ड का वजन कम से कम २५ किलो का था ।  निरंतर मेजर टेप, एंगल, प्लानर और मलेट के इस्तेमाल के बाद अंततः हेड बोर्ड जुड़ गया । 



 
डोवेल छेद 

 
डोवेल 


 
डोवेल जॉइंट 
                  अब बड़ा काम हो चूका था और मुझे विश्वास हो गया की अब में बेड बना ले जाऊंगा पर और किसी को ये विश्वास नहीं था क्योंकि सब कुछ अलग अलग था और चीजे जुडी हुई नहीं थी ।  फिर काम शुरू हुआ रेलिंग का जो बहोत सीधा था जिसमे सिर्फ लकड़ी का सीधा होना जरुरी था पर यहाँ भी २ लकड़ी टेढ़ी मिल गयी । स्क्रू का इस्तेमाल करने से पहले जो छेद किया जाता हैं उसे ऊपर थोड़ा बड़ा रखना चाहिए जिससे स्क्रू का हेड अन्दर चला जाता हैं । शुरू के कुछ स्क्रू को लगा करके बेड को जाँच करना शुरू कर दिया । अंततः बंक बेड का खाका तैयार हो गया ।



 
बंक बेड का ढांचा 


इसके पश्चात सबको विश्वास हो गया की अब बेड बन जायेगा, परंतु अब एक डर और सताने लगा । मेरा इस काम मे रूचि, ख़तम हो रही थी और बाकि के काम बचे रह जा रहे थे । कुछ दिन काम बंद कर दिया । फिर वही facebook वाला फंडा इस्तेमाल किया और जैसे ही Likes आये फिर काम शुरू हो गया । 

                 अब काम अपने अगले पड़ाव पर आ गया जहा सारे स्क्रू जोड़ने और स्टेप्स बनाने थे । मथियास के स्टेप्स सीधे सीधे थे, स्क्रू पर आधारित। यहाँ पर भी मैंने टेनन-मोर्टिस जॉइंट इस्तेमाल करने का फैसला किया । कुछ बदलाव, फिर स्टेप्स भी बन गए । मत्थिअस के बेड फ्लोर में भी लकड़ी का ही इस्तेमाल था पर मैंने यहाँ प्लाई का इस्तेमाल करने का फैसला लिया । वजह भारत में प्लाई इस्तेमाल होता हैं और मेरे पास कुछ पुराने प्लाई थे जिनको यहाँ इस्तेमाल करना था। पुरे प्रोजेक्ट में सर्कुलर सॉ का इस्तेमाल हो सकता था पर मैंने पारंपरिक तरीके से इसे बनाने का मन बना लिया था। प्लाई को हैण्ड सॉ से काटना बहोत कठिन काम हैं, सो पहली बार सर्कुलर सॉ का इस्तेमाल प्लाई काटने में हुआ । सो लगभग सभी चीजो को जोड़ने के बाद बेड पूरी तरह से तैयार हो गया । 






अब काम बचा था इसके आखिरी फेज का - कलरिंग । आसियान पेंट के स्टैन और पोलीयूर्थने का इस्तेमाल करने का फैसला लिया । १ कोट करने में लगभग ४-५ घंटे प्रति दिन लगे । लगभग २-३ दिनों में २ कोट का काम हो गया और बंक बेड पूरी तरह से बन गया । 


 
बंक बेड स्टैन कलरिंग के बाद 




                 इस असाधारण काम ने बहोत दर्द, कई सारे घाव और थकान दिए पर इसके पुरे होने के ख़ुशी ने सब कुछ भुला दिया । श्रेया और अपूर्वा की ख़ुशी ने इस सफलता को अविस्मरणीय कर दिया । 

Helpful Links :
१. पॉल सेलर - https://www.youtube.com/user/PaulSellersWoodwork
२. मैथियास - http://woodgears.ca/bed/bunk_bed/plans.html
३. एना वाइट - https://www.youtube.com/user/knockoffwood/videos


- पेपर्स 







टूल्स 



























1 comment:

  1. Bahut badhiya yogesh bhai ...swayam banane kuch karne mein jo maja hain uska aaklan nahin kiya jaa sakta .. lalsa to carpentry karne ki hume bhi hain dekho kab hota hain ... Beshak mehnat lagi par mujhe lagta hain kargar kaam hua hoga ... Beharhaal final cost kitna hua yeh shayad blog mein missing hain ..

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